
आज 13 जुलाई दिन सोमवार है. आज सावन महीने का दूसरी सोमवारी है. सोमवार महादेव जी का प्रिय दिन है. सावन में आने वाले सभी सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं. इस दिन भक्त घर पर या मंदिरों में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं और शिव जी को विभिन्न प्रकार की सामग्रियां चढ़ाते हैं. आज शिव भक्त दूसरी सावन सोमवारी का व्रत रख कर भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे. सावन भगवान शिव की उपासना का महीना माना जाता है. श्रावण मास के सोमवार बहुत ही सौभाग्यशाली माने जाते हैं. मान्यता है कि सावन सोमवार की व्रत रखने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
आइए जानते हैं श्रावण सोमवार व्रत की पूजा विधि, कथा, मुहूर्त और मंत्र…
काला तिल चढ़ाने से घर में आ सकती है खुशहाली
सावन में रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद भगवान शिव का जल से अभिषेक करने के साथ ही काले तिल अर्पण करें. काला तिल चढ़ाने से घर में खुशहाली आने की है मान्यता है.
ऐसा करने से मिलेगी कष्टों से मुक्ति
सावन में किसी नदी या तालाब पर जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं और साथ ही साथ मन में भगवान शिव का ध्यान करते रहें. मान्यता है कि ऐसा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है.
दूसरी सोमवारी आज
आज सावन की दूसरी सोमवारी है. भगवान शिव को सोमवार का दिन सबसे प्रिय है. सावन महीने के सभी सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं. इस दिन भक्त घर पर या मंदिरों में जाकर जलाभिषेक करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं को शिव मंदिरों में प्रवेश कर जलाभिषेक करने की अनुमति नहीं दी गयी है. घर बैठे श्रद्धालु बाबा का ऑनलाइन दर्शन कर रहे हैं.
85000 श्रद्धालुओं ने की ऑनलाइन दर्शन
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए श्रावणी मास में कांवरियों व बाहरी श्रद्धालुओं के प्रवेश के रोक के बाद प्रशासन की ओर से बाबा बैद्यनाथ के ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था जारी है. अब तक 85000 श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन बाबा बैद्यनाथ की पूजा देखी है.
भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न
भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से किया जाता है, इसके साथ दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की विधि प्रचलित है. इस समाग्री से जलाभिषेक करने पर भगवान शिव प्रसन्न होते है.
इन मंत्रों के जाप करने से मिल सकता है लाभ
– ओम साधो जातये नम:।।
– ओम वाम देवाय नम:।।
– ओम अघोराय नम:।।
– ओम तत्पुरूषाय नम:।।
– ओम ईशानाय नम:।।
-ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।।
ऐसे करें आज पूजा…
ये व्रत सूर्योदय से लेकर तीसरे प्रहर तक किया जाता है. इस दिन शिवलिंग का जलाभिषेक करना फलदायी माना गया है. व्रत वाले जातक सुबह जल्दी उठ जाएं. पूरे घर की सफाई कर स्नान कर लें. मंदिर में शिवजी की मूर्ति के समक्ष सभी सामग्री लेकर बैठ जाएं. व्रत का संकल्प लें. शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा करें.
शिव के साथ माता पार्वती की भी करें पूजा
भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा करें. पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल, गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढ़ाया जाता है.
सावन मास की दूसरी सोमवारी आज, व्रत विधि
सावन मास की दूसरी सोमवारी आज है. सोमवार व्रत सूर्योदय से लेकर तीसरे प्रहर तक किया जाता है. इस दिन शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है. आइए जानते है कि सावन मास की दूसरे सोमवार को महादेव जी की कैसे करना चाहिए पूजा…
– व्रत वाले जातक सुबह जल्दी उठ जाएं
– पूरे घर की सफाई कर स्नान कर लें
– मंदिर में शिवजी की मूर्ति के समक्ष सभी सामग्री लेकर बैठ जाएं
– व्रत का संकल्प लें. शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा करें
– पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल, गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढ़ाया जाता है.
– इस दिन धूप दीपक जलाकर कपूर से शिव जी की आरती करनी चाहिए
– व्रत कथा सुनें और शिव के मंत्रों का जाप करें
– व्रती को तीसरा प्रहर खत्म होने के बाद एक ही बार भोजन करना चाहिए
– रात्रि के समय जमीन पर सोना चाहिए.
सावन के दूसरे सोमवार को भगवान शिव को इस मंत्र से करें प्रसन्न
रूद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
श्रद्धापूर्वक पूजा करने पर भगवान शिव दूर कर देते हैं दुख
भगवान शिव नीलकंठ धारी हैं, अर्थात उन्होंने विष को पीकर अपने कंठ में रख लिया था। उसी तरह भगवान लोगों के दुखों को भी हर लेते हैं. यदि आप श्रद्धापूर्वक पूरे मन से भगवान की शरण में जाएं और उनकी पूजा-अर्चना करें तो वे दुखों को दूर कर देंगे.
महामृत्युंजय गायत्री मंत्र
– ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ ॥
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