गौरैया के कारण चीन में 2.5 करोड़ लोग मर गए थे इतिहास हमेशा इसलिए लिखा जाता है ताकि उसे सीख कर भविष्य संवारा जाए। चीन इन दिनों सारी दुनिया की सुर्खियों में है। कोरोना वायरस चीन से शुरू होकर दुनिया के 200 देशों में फैल चुका है। इससे मरने वालों की संख्या तीन लाख के आसपास हो गई है जबकि पीड़ितों की संख्या 60 लाख से ज्यादा। फिलहाल पता नहीं चल पाया है कि चीन ने ऐसी कौन सी गलती की जो इस तरह का वायरस पैदा हो गया लेकिन इतिहास बताता है कि चीन की सरकार कई गंभीर गलतियां पहले भी कर चुकी है। आज हम आपको एक ऐसी भयानक और जानलेवा गलती के बारे में बताने जा रहे हैं।
गौरैया चिड़िया क्या है, यह कितनी उपयोगी है (गौरैया के कारण चीन)
घटनाक्रम शुरू होने से पहले यह बता दें कि गौरैया इस पृथ्वी पर सबसे संवेदनशील चिड़िया में से एक है। यह इतनी अधिक संवेदनशील है कि रेडियो तरंगों से भी घायल हो जाती है और यह इतनी उपयोगी है कि इसके बिना आप अपने खेतों में अनाज को संक्रमण से बचाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। गौरैया के कारण चीन में 2.5 करोड़ लोग मर गए थे.
चीन सरकार की एक गलती के कारण ढाई करोड़ लोग मर गए थे
शीर्षक वैसा ही लिखा गया है जैसा कि सरकार की गलतियों को छुपाने वाले इतिहासकार लिखते हैं। असल में मौत का कारण गौरैया नहीं बल्कि चीन की सरकार थी। बात 1958 की है जब चीन के माओ जेडोंग ने चीन में एक अभियान शुरू करवाया था जिसे four pests campaign का नाम दिया गया था। जिसमें मच्छर-मक्खी, चूहा और गौरैया को मारने का फरमान जारी किया गया। उनका कहना था कि गौरैया खेतों से सारा अनाज खा जाती है इसलिए इसे भी मारना जरूरी है। मच्छर, मक्खी और चूहे के नुकसान तो सबको ही पता हैं कि मच्छर मलेरिया फैलाते हैं, मक्खियां हैजा फैलाती हैं और चूहे प्लेग फैलाते हैं इससे इनका सफाया इंसानों के हित में था। गौरैया के कारण चीन में 2.5 करोड़ लोग मर गए थे
कथित देशभक्त क्रांतिकारियों ने गौरैया को मरते दम तक प्रताड़ित किया
चीन में उस समय कथित देशभक्त क्रांतिकारियों ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह चलाया। लोग बर्तन व ड्रम बजा बजाकर चिड़ियों को उड़ाते रहते और लोगों की पूरी कोशिश होती कि चिड़ियों को खाना ना मिले और बैठने की जगह ना मिले। इससे गौरैया कब तक उड़ती आखिर थक कर गिर जाती और उसे मार दिया जाता।
गौरैया चिड़िया मारने वाले को इनाम दिया जाता था
इसी प्रकार ढूंढ-ढूंढ कर उनके अंडों को फोड़ दिया गया और इस प्रकार उनकी क्रूरता का शिकार चिड़िया व उसके छोटे-छोटे बच्चों को भी होना पड़ा। हालत यह थी कि जो शख्स जितनी गौरैया को मारता उसे स्कूल, कॉलेज के आयोजनों में मेडल और इनाम दिए जाते।
गौरैया चिड़िया का सबसे बड़ा सामूहिक शिकार किया गया
गौरैया को यह बात समझ आ गई थी कि अब उनके लिए कोई भी सुरक्षित जगह नहीं है इसलिए एक बार बहुत सारी गौरैया झुंड बनाकर पोलैंड के दूतावास में जा छूपी, परन्तु गौरैया को मारने वाले वहां भी पहुंच गए और उनके सिर पर खून सवार था उन्होंने दूतावास को घेर लिया और इतने ड्रम बजाए कि उड़ते उड़ते थक करके सारी गौरैया गिर कर मर गईं।
क्या गौरैया चिड़िया को मारने से चीन का अभियान सफल हुआ
अब चीन के लोग खुश थे कि उनका अनाज खाने वाली गौरैया से छुटकारा मिल गया है और अब अनाज सुरक्षित रहेगा। परंतु क्या अनाज सुरक्षित रहा, नहीं बल्कि उल्टा हो गया। अगले दो साल आते-आते 1960 तक लोगों को समझ आ चुका था कि उनसे कितनी बड़ी गलती हो गई है। गौरैया अनाज नहीं खाती थी, बल्कि कीड़ों को खा जाती थी जो अनाज की पैदावार को खराब करने का काम करते थे। गौरैया के कारण चीन में 2.5 करोड़ लोग मर गए थे
चीन सरकार की एक गलती से गौरैया के कारण चीन के ढाई करोड़ लोग मारे गए
गौरैया के मर जाने से नतीजा यह हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने की बजाय, तेजी से घटने लगी। टिड्डी और दूसरे कीड़ों की तादाद तेजी से बढ़ने लगी और उनकी आबादी पर लगाम लगाना मुश्किल हो गया। फसलें खराब हो गईं और बुरी तरह से अकाल पड़ गया और इस अकाल में ढाई करोड़ लोग मारे गए।
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गौरैया की कम होती आबादी के लिए जिम्मेदार तो इंसान ही है. जिसके घर को इंसानों ने उजाड़ दिया, वो भला नाराज क्यों ना हो और दूर क्यों न जाए? गौरैया पर इंसानों के जुल्म की दास्तां चीन का एक अभियान भी बयां करता है. आज गौरैया दिवस (sparrow day) के दिन तो हर कोई गौरैया के लिए पानी रखने की बातें करता नजर आ जाएगा, लेकिन आज से 60 साल चीन के हुक्मरानों के कहने पर गौरैया को ढूंढ़-ढूंढ़ के मारा गया था. गौरैया के कारण चीन में 2.5 करोड़ लोग मर गए थे
चीन में शुरू हुआ था गौरैया मारने का अभियान
बात 1958 की है, जब माओ जेडोंग ने एक अभियान शुरू किया था, जिसे Four Pests Campaign का नाम दिया था. इस अभियान के तहत चार पेस्ट को मारने का फैसला किया गया था. पहला था मच्छर, दूसरा मक्खी, तीसरा चूहा और चौथी थी हमारी प्यारी मासूम गौरैया. सोच कर भी अजीब लगता है कि आखिर उस मासूम गौरैया से इंसानों को ऐसा क्या डर था, जिसके चलते उसे मारने का अभियान चलाने की नौबत आ गई. मानते हैं कि मच्छरों ने मलेरिया फैलाया, मक्खियों ने हैजा और चूहों ने प्लेग, तो इन सबका सफाया तो इंसानों के हित में था, लेकिन गौरैया का क्या दोष था?
गौरैया के माथे मढ़ा गया ये दोष
मासूम कही जाने वाली गौरैया को माओ जेडोंग ने ये कहकर मारने का फरमान सुना दिया था कि वह लोगों के अनाज खा जाती है. कहा गया कि गौरैया किसानों की मेहनत बेकार कर देती है और सारा अनाज खा जाती है. मच्छर, मक्खी और चूहे तो नुकसान करने के आदि हैं, इसलिए वह खुद को छुपाने में भी माहिर निकले, लेकिन गौरैया जैसी मासूम चिड़िया तो इंसानों के सबसे नजदीक रहती थी, वह चाहकर भी खुद को छुपा न सकी. नजीता ये हुआ कि इंसानों ने भी बड़ी निर्ममता से उसे ढूंढ़-ढूंढ़ कर मारा.
उड़ते-उड़ते थक जाती और जमीन पर आ गिरती गौरैया
चीन में उस समय के तथाकथिक क्रांतिकारियों ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह फैला दिया. लोग भी बर्तन, टिन, ड्रम बजा-बजाकर चिड़ियों को उड़ाते. लोगों की कोशिश यही रहती कि गौरैया किसी भी हालत में बैठने न पाए और उड़ती रहे. बस फिर क्या था, अपने नन्हें परों को आखिर वो गौरैया कब तक चलाती. ऐसे में उड़ते-उड़ते वह इतनी थक जाती कि आसमान से सीधे जमीन पर गिर कर मर जाती.
कोई गौरैया बच न जाए, ये पक्का करने के लिए उनके घोंसले ढूंढ़-ढूंढ़ कर उजाड़ दिए गए, जिनमें अंडे थे उन्हें फोड़ दिया गया और अगर किसी घोंसले में चिड़िया के बच्चे मिले तो उन्हें भी इंसानों की क्रूरता का शिकार होना पड़ा.
इनाम से नवाजा जाता था ‘हत्यारों’ को
जो शख्स जितनी अधिक गौरैया का कत्ल करता, उसे उतना ही बड़ा इनाम भी मिलता. स्कूल-कॉलेज में होने वाले आयोजनों में गौरैया का कत्ल करने वालों को मेडल मिलते. जो जितनी अधिक गौरैया मारता, उसे उतनी ही अधिक तालियों से नवाजा जाता. जाहिर सी बात है, लोगों में इस अभियान को इस तरह से फैलाया गया था कि लोगों को गौरैया का कत्ल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती थी.
जब दूतावास में भी नहीं बच पाई जान
गौरैया को जल्द ही ये समझ आ गया था कि उनके छुपने के लिए कौन सी जगह सबसे सुरक्षित है. बहुत सारी गौरैया झुंड बनाकर पीकिंग स्थित पोलैंड के दूतावास में जा छुपीं. गौरैया को मारने के लिए दूतावास में घुसने जा रहे लोगों को वहां के अधिकारियों ने बाहर ही रोक दिया. लेकिन इंसान तो इंसान है, खासकर चीन के वो लोग जिनके सिर पर खून सवार हो. पूरे पोलिश दूतावास को चारों तरफ से घेर लिया गया. दो दिन तक लगातर ड्रम पीटे गए. आखिरकार ड्रमों के शोर से गौरैया के झुंड ने दम तोड़ दिया. सफाई कर्मियों के बेलचों से मर चुकी प्यारी गौरैया को दूतावास से बाहर फेंका गया.
गौरैया मारने का अंजाम भुगतना पड़ा भयंकर अकाल से
चीन में एक अभियान के तहत गौरैया का मारने का पाप तो लोगों ने कर दिया था. लेकिन महज दो सालों में ही अप्रैल 1960 आते-आते लोगों को इसका बेहद खौफनाक अंजाम भुगतना पड़ा. दरअसल, गौरैया सिर्फ अनाज नहीं खाती थी, बल्कि उन कीड़ों को भी खा जाती थी, जो अनाज की पैदावार को खराब करने का काम करते थे. गौरैया के मर जाने का नजीता ये हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने के बजाए घटने लगी. माओ को समझ आ चुका था कि उनसे भयानक भूल हो गई है. उन्होंने तुरंत ही गौरैया को Four pests से हटने के आदेश जारी कर दिए. और गौरैया की जगह अब खटमल मारने पर जोर देने को कहा.
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. टिड्डी और दूसरे कीड़ों की आबादी तेजी से बढ़ी. गौरैया तो पहले ही मारी जा चुकी थीं, जो उनकी आबादी पर लगाम लगाती. कीड़ों को मारने के लिए तरह-तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा, लेकिन पैदावार बढ़ने के बजाय घटती ही रही. और आगे चलकर इसने एक अकाल का रूप ले लिया, जिसमें करीब 2.5 करोड़ लोग भूखे मारे गए.
माओ जेडोंग को अपनी भूल समझने में बहुत देर हो गई थी, लेकिन हमें तो यह पता है कि गौरैया हमारी पारिस्थितिकी के लिए कितनी अहम है. गौरैया के ना होने से कितना नुकसान हो सकता है, चीन का अकाल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. गौरैया को मारें नहीं, ना ही भगाएं. ये चिड़िया इंसानों के सबसे करीब रहती है और जरा सोच कर देखिए,
आखिर एक गौरैया आपका कितना अनाज खा जाएगी. आज के समय में शहरों में गौरैया मुश्किल से ही देखने को मिलती है. तो अपनी छत पर गौरैया के लिए पानी और मुट्ठी भर अनाज रखें, ताकि हमें कभी चीन जैसा अकाल देखने की नौबत न आए.
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That was shameful and cruel act.
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