रहस्यमयी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में क्यों नहीं होती मूर्ति पूजा ?

रहस्यमयी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में क्यों नहीं होती मूर्ति पूजा ?

1. पुरी का जगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ इस मंदिर में अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजन हैं।

2. गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी में कई साल तक रहे थे, इस वजह से इस मंदिर का गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में खास महत्व है।

3. 400,000 वर्ग फुट में फैले इस विशाल मंदिर के शिखर पर चक्र और ध्वज स्थित हैं। इन दोनों का खास महत्व है। चक्र सुदर्शन चक्र का और लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ के मंदिर के अंदर विराजमान होने का प्रतीक है। अष्टधातु से निर्मित इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है।

4. कलिंग शैली में बने इस विशाल मंदिर के निर्माण का कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया था। बाद में अनंग भीम देव ने इसे वर्तमान स्वरुप दिया था।

ये हैं पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रहस्य, जिन्हें जानकर आप रह जायेंगे दंग

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5. इस मंदिर के बारे में आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह है कि मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है।

6. कहा जाता है कि आप जगन्नाथ पुरी में कहीं से भी मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देख सकते हैं।

7. इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसके ऊपर से कोई भी पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है।

8. मंदिर के आश्यर्चों में एक बात और बताई जाती है कि इसके रसोईघर में चूल्हे पर एक के ऊपर एक 7 बर्तन रखा जाता है। भोजन पहले सबसे ऊपर वाले बर्तन का पकता है।

9. बताया जाता है कि इस मंदिर में भक्तों के लिए बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता है। मंदिर में वर्ष भर सामान्य मात्रा में ही प्रसाद बनाया जाता है, लेकिन भक्तों की संख्या 1000 हो या एक लाख प्रसाद किसी को कम नहीं पड़ता। मंदिर का कपाट बंद होते ही बचा हुआ प्रसाद खत्म हो जाता है। 500 रसोइए अपने 300 सहयोगियों के साथ प्रसाद बनाते हैं।

10. इस मंदिर की एक और खासियत है। इस मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय दिखाई नहीं देती है। एक और बात गौर करने वाली है कि मंदिर के सिंहद्वार में अंदर की ओर पहला कदम रखते ही समुद्र के लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती है। जब आप मंदिर से बाहर निकलते हैं तो सिंहद्वार से पहला कदम बाहर रखते ही समुद्र के लहरों की ध्वनि सुनाई देने लगती है।

माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं।

द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।

रूप बदलती मूर्ति की नहीं होती पूजा :

यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।

जगन्नाथ मंदिर के 10 चमत्कार हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है।

आज का उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और अन्य कई देशों का इन्हीं बंदरगाह के रास्ते व्यापार होता था।

पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद

पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे।

जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण पुजारी भी हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते हैं।

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